बेरोज़गारी (berozgari)

ये बेरोजगारी भी बहुत कमाल की चीज़ है साहब जो कुछ देखा नही होता वो सब दिखा देती है। जो कुछ चाहिए होता है वो सब छीन लेती है।आटे दाल के भाव पता करने के लिए आपको उन्हें खरीदना नही पड़ता बल्कि एक बार मां बाप से बहस कर लो बेरोजगारी में वो खुद बता देते हैं।
बिजली के बिल की रकम रोज रोज सुनाई जाती है एक बल्ब तो खुला छोड़ दो। लोकी और अरबी बननी शुरू हो जाती हैं घर में क्योंकि तुम कमा नही रहे हो तो तुम्हें पता भी तो चलना चाहिए। साहब आप थोड़ी ज्यादा देर तो लगा के देखो घर से बाहर, तुरंत आपको घरवाले कारण बताएंगे कि आप पैसे कमाने में क्यों सक्षम नही हैं, क्योंकि आप फालतू के कामों में समय व्यर्थ करते हैं। अब मियां उन्हें कौन समझाए कि काम नहीं है इसलिए फालतू के कामों में समय व्यर्थ कर लेते हैं। पर आप कैसे समझा सकते हैं, आप से कोई क्यों ही समझे आप ठहरे बेरोजगार, और बेरोजगार समझदार कबसे होने लगे।
और तो और अब दोस्तों से भी बात नही होती, करो भी तो कैसे उनके तरक्की के किस्से अक्सर चुभने लगते हैं। वो भी कमबख्त हर दस मिनट में अपनी मोटी तनख्वाह का बखान करने से बाज नही आते। अब गलती तो उनकी भी नहीं है सारे जीवन तो तुम चतुर बनते रहे उनके सामने, अब वो तुमसे आगे निकल गए तो उन्हें भी तो चतुर बनने का मौका मिलना चाहिए न।
कहीं बाहर आने जाने में जी कतराने लगता है, किसी भी रिश्तेदारी के कार्यक्रम में जाने का मन ही नही करता। क्योंकि सब यही तो पूछते हैं कि क्या कर रहे हो? क्या कमा रहे हो? ये रिश्तेदार भी तो अपने बच्चों का पैकेज बताने घर आ जाते हैं। कुछ तो एक एक प्रोमोशन के बारे में तुम्हारे घरवालो को इत्तला करते रहते हैं। ऐसी निगाहों से देखते हैं जैसे कबाड़ पड़ा हो। अरे भैया हम कबाड़ नहीं हैं हम इंसान ही हैं, बस बाकियों की तरह पैसा कमाने की मशीन नही बन पा रहे। हमारी परख जज़्बातों से करो, पैसों से तो सामान की होती है।
खैर छोड़ो अब दुनिया ऐसे ही चलती है और ऐसे ही चलेगी, लोगों की बखत लोगों के बनाये हुए रूपये से ही ही होगी। कभी कभी तो लगता है सरकार भी क्यों ही दे बेरोज़गारों पर ध्यान, अब जब आपके घरवाले, दोस्त और रिश्तेदार आप पर और आपके जज़बातों पर ध्यान नही दे रहे तो सरकार को क्या ही जरूरत है।अब हमारी बात पर भी आप ज्यादा ध्यान ना दो, हम ठहरे बेरोज़गार और भला बेरोजगार की बातों को कौन तवज्जो देता है...

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